पूर्वांचल विश्वविद्यालय में परीक्षकों के पारिश्रमिक भुगतान में लाखों की अनियमितता का मामला
अब वाराणसी मंडलायुक्त करेंगे मामले की गहन जांच
जौनपुर।
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में परीक्षकों के पारिश्रमिक भुगतान में भारी वित्तीय अनियमितता उजागर होने के बाद प्रशासन ने निर्णायक कदम उठाया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने वित्तीय गड़बड़ी के इस प्रकरण में वित्त अधिकारी संजय कुमार राय को पदमुक्त कर दिया है। उनकी जगह अब राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद के वित्त अधिकारी पूर्णेंदु शुक्ला को पूर्वांचल विश्वविद्यालय के वित्तीय कार्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वहीं, संजय कुमार राय को उत्तर प्रदेश कोषागार, लखनऊ से संबद्ध किया गया है।
यह मामला जुलाई 2023 में प्रकाश में आया था, जब तत्कालीन कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने वित्तीय अनियमितता को गंभीरता से लेते हुए एक कर्मचारी को बर्खास्त और एक अन्य को निलंबित कर दिया था। हालांकि, जांच में यह स्पष्ट हुआ कि कार्यवाही केवल अधीनस्थ कर्मचारियों तक सीमित रही, जबकि उच्च पदस्थ अधिकारी बचाव में लगे रहे।घोटाले की जांच के लिए तत्कालीन कुलपति ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था, जिसमें—प्रो. अजय प्रताप सिंह (मनोविज्ञान विभाग),सेवानिवृत्त न्यायाधीश प्रेमचंद त्रिपाठी चार्टर्ड अकाउंटेंट अमित गुप्ता को शामिल किया गया। प्रो. अजय प्रताप सिंह की रिपोर्ट में बड़े पैमाने पर वित्तीय गड़बड़ी को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया, जबकि सेवानिवृत्त न्यायाधीश और चार्टर्ड अकाउंटेंट अमित गुप्ता की रिपोर्ट में विरोधाभास पाया गया।जांच में यह स्पष्ट हुआ कि वित्त विभाग ने परीक्षकों के पारिश्रमिक के नाम पर उनके स्वजन और बाहरी व्यक्तियों के खातों में लाखों रुपये स्थानांतरित कर दिए थे। जब मामला उजागर होने लगा, तो वित्त अधिकारी संजय कुमार राय ने कुछ धनराशि को वापस मंगवाकर नकद जमा करने का प्रयास किया, लेकिन घोटाले की परतें एक-एक कर खुलती चली गईं। प्रारंभिक जांच में इस वित्तीय अनियमितता की राशि लगभग 14 लाख रुपये आंकी गई थी, लेकिन सूत्रों के अनुसार, वास्तविक हेरफेर की रकम इससे अधिक हो सकती है।घोटाले की गंभीरता को देखते हुए अब इस पूरे प्रकरण की जांच वाराणसी मंडलायुक्त को सौंपी गई है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्पष्ट संकेत दिया है कि जांच में दोषी पाए जाने वालों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। उच्च पदस्थ अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है, और जांच के पश्चात कई वरिष्ठ अधिकारियों पर भी कार्रवाई संभव है।