विभाग की उदासीनता से एमसीए प्रथम वर्ष के 60 छात्रों की पढ़ाई प्रभावित, पुस्तकें न मिलने से गंभीर समस्या
दो महीने से बिना किताबों के संघर्ष: छात्रों की शिक्षा पर मंडराया संकट
जौनपुर।
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के एमसीए प्रथम वर्ष के 60 छात्र-छात्राओं का पठन-पाठन अधर में लटका हुआ है। विश्वविद्यालय में प्रवेश लिए दो महीने से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन अब तक इन विद्यार्थियों का डेटा सेंट्रल लाइब्रेरी को नहीं भेजा गया है। इस वजह से छात्रों को लाइब्रेरी से अध्ययन के लिए आवश्यक पुस्तकें उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं, जिससे उनकी शिक्षा में गंभीर व्यवधान उत्पन्न हो गया है।
एमसीए विभाग की इस लापरवाही का आरोप विभाग अध्यक्ष डॉ. नूपुर गोयल पर है, जिनके पास कई बार छात्रों की सूची भेजी जा चुकी है। शिक्षक और छात्र-छात्राओं ने कई बार उन्हें प्रवेशित 60 विद्यार्थियों की सूची उपलब्ध कराई, ताकि यह सेंट्रल लाइब्रेरी को भेजी जा सके और छात्रों को पुस्तकें मिल सकें। बावजूद इसके, विभागाध्यक्ष ने अब तक इस सूची को लाइब्रेरी को प्रेषित नहीं किया, जिससे छात्र-छात्राओं को पिछले दो महीने से जरूरी किताबें नहीं मिल सकी हैं। इस स्थिति में छात्रों की पढ़ाई बाधित हो रही है, जिससे उनका शैक्षिक भविष्य प्रभावित हो रहा है।सेंट्रल लाइब्रेरी विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने वाले सभी विद्यार्थियों को आवश्यक शैक्षणिक सामग्री और पुस्तकें उपलब्ध कराती है, जो उनके अध्ययन का प्रमुख स्रोत होती हैं। लेकिन पुस्तकें न मिलने से एमसीए के छात्रों के लिए स्वाध्याय और विषयों की गहनता से तैयारी करना असंभव हो गया है। पाठ्यक्रम की कठिनाइयों को समझने के लिए छात्रों को पुस्तकें और अध्ययन सामग्री की सख्त जरूरत होती है। ऐसे में, विभाग की इस लापरवाही से छात्रों को मानसिक तनाव झेलना पड़ रहा है, साथ ही उनकी शैक्षणिक प्रगति भी प्रभावित हो रही है।इस समस्या को लेकर छात्रों में गहरी निराशा है। वे अपनी पढ़ाई को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि हर दिन की देरी उनके भविष्य को अंधकार की ओर धकेल रही है। समय पर पुस्तकें न मिलने से उनका पाठ्यक्रम पीछे छूट रहा है और परीक्षा की तैयारी भी प्रभावित हो रही है। सवाल यह उठता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन कब इस समस्या का संज्ञान लेगा और कब छात्रों को उनका हक मिलेगा।छात्र-छात्राओं और शिक्षकों की बार-बार की गई अपील के बावजूद विभागाध्यक्ष की उदासीनता से यह साफ है कि समस्या का समाधान तब तक नहीं होगा जब तक उच्च प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस पर ठोस कदम नहीं उठाया जाता।