
जौनपुर:
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन सुविधा के अभाव में आर्थिक तंगी और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में एक मेले में ऐसी ही एक मार्मिक घटना सामने आई। विश्वविद्यालय के रिटायर्ड कर्मचारी शंभू जायसवाल, जिन्होंने अपने जीवन के कई दशक संस्थान को समर्पित किए, अब अपनी जीविका चलाने के लिए लाई-गट्टा बेचने को मजबूर हैं।
यह घटना न केवल भावनात्मक रूप से झकझोरती है, बल्कि उन कर्मचारियों के लिए भी चेतावनी है जो सेवानिवृत्ति के बाद ऐसी ही समस्याओं का सामना कर सकते हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद संघर्ष
पेंशन सुविधा के अभाव में पूर्वांचल विश्वविद्यालय के रिटायर कर्मचारी स्थायी आय के बिना कठिन जीवन व्यतीत कर रहे हैं। शंभू जायसवाल जैसे कर्मचारियों के लिए रिटायरमेंट के बाद आजीविका का कोई स्थायी साधन न होने के कारण आर्थिक संकट और सामाजिक संघर्ष एक आम समस्या बन गई है।
इंटरनेट मीडिया पर छाई चर्चा
एक मेले में लाई-गट्टा बेचते शंभू जायसवाल की तस्वीर ने इंटरनेट मीडिया पर हलचल मचा दी। विश्वविद्यालय के कर्मचारियों और पत्रकारों ने इसे साझा करते हुए चिंता जाहिर की। इस तस्वीर ने प्रशासन की कार्यप्रणाली और सेवानिवृत्त कर्मचारियों की आर्थिक सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए।
पेंशन न होने से आने वाली समस्याएं
1. आर्थिक असुरक्षा: पेंशन की कमी से रिटायर्ड कर्मचारियों की नियमित आय समाप्त हो जाती है।
2. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: आर्थिक संकट के चलते आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच मुश्किल हो जाती है।
3. सामाजिक प्रतिष्ठा का ह्रास: मेले या अन्य स्थानों पर छोटे व्यवसाय करने से सामाजिक सम्मान प्रभावित होता है।
क्या हो सकता है समाधान?
1. पेंशन योजना लागू करना: सेवानिवृत्त कर्मचारियों की वित्तीय सुरक्षा के लिए विश्वविद्यालय को पेंशन योजना शुरू करनी चाहिए।
2. आपातकालीन सहायता कोष: स्वास्थ्य और अन्य जरूरतों के लिए विशेष कोष का गठन किया जाए।
3. पुनः रोजगार का अवसर: अनुभव के आधार पर रिटायर्ड कर्मचारियों को रोजगार का विकल्प प्रदान किया जाए।
4. कर्मचारी संघ की सक्रियता: संघ को इस मुद्दे को प्राथमिकता देते हुए समाधान के लिए प्रशासन पर दबाव बनाना चाहिए।
प्रशासन और समाज की भूमिका
शंभू जायसवाल जैसे कर्मचारियों की कहानी सिर्फ व्यक्तिगत संघर्ष नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी है कि अगर पेंशन जैसी मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया गया, तो कई और कर्मचारी इसी तरह के हालात में फंस सकते हैं। यह समय है कि प्रशासन और समाज मिलकर इस मुद्दे का स्थायी समाधान सुनिश्चित करें।
एक मेले में लाई-गट्टा बेचते शंभू जायसवाल की तस्वीर एक गहरी पीड़ा को उजागर करती है। यह घटना सिर्फ उनके संघर्ष की कहानी नहीं, बल्कि सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाने का आह्वान भी है।



